मूलमंत्र क्या है
श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की बाणी मूल
मंत्र से ही
आरंभ होती है। ये मूल मंत्र
हमें उस परमात्मा की
रूपरेखा की स्पष्टता बताता
है जिसकी पूजा अलग-अलग धर्मो
मैं और अलग - अलग रूप
में होती हैं।
मूलमंत्र :- मुख्या रूप से , मन के अंदर की अवस्था तरंगो , भावनाओं को, सोच विचार को स्थिर, शून्य करने की चाबी , समाधान को मूलमंत्र कहते है।
मूल :- जड़ , तत्व ,बुनियाद, मुख्य ।
मंत्र:- मंत्र शब्द मन +त्र से बना है , मन का अर्थ है सोच ,विचार ,मनन ,या चिंतन करना
और “त्र ” का अर्थ है
बचाने वाला , सब प्रकार के
अनर्थ, भय से।
ੴ १ ओंकार
सतिनामु करता
पुरखु , निरभउ निरवैरु
अकाल मूरति, अजूनी सैभं गुर प्रसादि ।।
अर्थ:- १ -(एक ) केवल एक ही शक्ति है वही प्रभु है जो
ओंकार---- "ओंकार - ओं ( सब कुछ ) + कंर ( करने वाला ) है , करता है , ना उससे पहले कोई है और ना ही उसके बाद कोई है। (ईश्वर एक है)
सतनाम :- वह सच्चा और सच है, सत्य है ,सदा अटल है, हमेशा रहने वाला है।
करता पुरख :- सबको बनाने वाला ,सब का सिरजनहार है ,वह सृष्टि का निर्माण,और रचना करने बाला है
निरभउ :- उसको किसी का भय नहीं है वह भयमुक्त है, वह निर्भय है।
निरवैर :- उसको किसी से भी दुश्मनी , बैर नहीं है , उसकी नजर मैं सब एक ही है।
अकाल मूरत :- वह काल से परे है जिसका कोई स्वरूप नहीं है, शकल नहीं है प्रभाव से भी परे है।
अजूनी :- वह अजन्मा है ,किसी योनि मैं नहीं आता ,जन्म मरण से मुक्त है
सैभं:-
किसी ने उसको जन्म
नहीं दिया। , वह एक रौशनी
का पुंज है
गुर प्रसादि :-प्रभु की प्राप्ति एक प्रसाद है जो गुरु के आशीर्वाद से मिलता है।
है प्रभु जी आप ,
एक
ही है जिसने सारी
सृष्टि का निर्माण,और रचना की
है आप जी निर्माता,रचनाकार है , आप ओंकार
है जो
सब कुछ कर
सकता है और
करता है, आप से ना
तो पहले कोई है और
ना ही आप जी के बाद
कोई है। देवता भी आप जी का सिमरन करते रहते है।
प्रभु जी आप सत्य और सच्ची शक्ति
है आप का वजूद अटल है
, आप एक ऐसी शक्ति
है जिसका कोई अंत नहीं है,आप जी बेअंत है।
प्रभु जी आप, सबको बनाने वाले ,सब का सिरजनहार है
,आप स्वयं सृष्टि के निर्माता और रचनाकार है।
आप वह शक्ति है जो भयमुक्त है, भय भी आप से डरता है , आप जी किसी
से भी दुश्मनी, बैर नहीं रखते हो , क्योकि आप स्वयं
सब के रचनाकार हो ।
प्रभु जी आप तो काल से
भी परे हो , आप जी की कोई सूरत
,शकल नहीं है आप तो
अकाल मूरत है।
प्रभु जी आप ,तो केवल एक प्रकाश का
पुंज है , आप जी को किसी ने जन्म नहीं
दिया ,आप किसी भी
योनियों मैं नहीं आते ।
प्रभु जी आप की प्राप्ति एक प्रसाद है
जो आप जी का सिमरन करने
से मिलता है ,----- कृपा करे----
(इस १
ओंकार(प्रभु) हरी का सिमरन करने
से प्रसाद (कृपा ) के रूप मैं
मनुष्य को सुख
, शांति और खुशियाँ की प्राप्ति होती है। और दुःख, कष्ट ,विकार दूर
हो जाते
है , यही तो मनुष्य चाहता
है :- पर इसके
लिये मनुष्य
को अपने मन को शांत
और शुद्व करके प्रभु (हरी) मे लीन होकर इस
मूलमंत्र का
जप, सिमरन करना
चाहिये। )
सुखमनी साहिब असटपदी -2
सुखमनी साहिब असटपदी -2
आप जी के चरणों मैं हाथ जोड़ के बेनती हैं आगर किसी भी तरह की कोई गलती /त्रुटि हो तो क्षमा करना और अपनी कीमती रायै जरूर देना जी।